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Civil Engineering College in Kanpur

What is Civil Engineering? Civil designing is apparently the most established designing discipline. It manages the fabricated climate and can be dated to whenever somebody first positioned a rooftop over their head or laid a tree trunk across a stream to make it simpler to get across.  VSGOI  Civil Engineering College in Kanpur helps you to get over there. Civil Engineering College in Kanpur The fabricated climate envelops a lot of what characterizes present-day civilization. Structures and extensions are regularly the main developments that ring a bell, as they are the most prominent manifestations of primary designing, one of structural designing’s significant sub-disciplines. Streets, rail lines, tram frameworks, and air terminals are planned by transportation designs, one more classification of structural designing. And afterward, there are the less apparent manifestations of structural specialists.  Each time you open a water fixture, you anticipate that water should come out, wit
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मसाला उधोग कैसे शुरू करे (species industry)

  मसाला उद्योग( Species Industry) प्राचीनकाल विभिन्न मसालो का उत्पादन और निर्यात करनेवालाए क प्रमुख देश रहा है। गर्म मसालों में मुख्य तौर पर काली मिर्च, धनिया, जीराइ लायची, लाल मिर्च, अदरख और हल्दी का इस्तेमाल किया जाता है। विदेशों मेंइ न मसालों की भारी मांग के मद्देनजर इनका निर्माण करना लाभदायक उद्योगसा बित हो सकता है।मसाला बनाने के लिए निम्नलिखित प्रक्रियाओं से गुजरना पड़ता है।    पानी से धुलाई और सफाई:  मसालों से मिट्टी आदि गंदगी को हटाने के लिए तेज दबाव पर पानी से धुलाई और सफाई की जाती है। छीलकर छोटे-छोटे टुकड़ों में काटना:  अदरक आदि जैसे मसाले ke छीलकर छोटे-छोटे टुकड़ों में काटने की जरूरत होती है। अगर इसे छोटे-छोटेटु कड़ों में काट लिया जाए तो इसे सूखने में कम समय लगता है। अदरक को पहले चाकू से छील लिया जाता है। कभी-कभी हल्दी या अदरक को पानी में उबाल भी लिया जाता है जिसके कारण इसके सूखने में कम समय लगता है।मिर्च आदि को सुखाने से पहले भाप में पांच मिनट तक गर्म किया जाता है। सुखाना : लागत कम करने के लिए मसालों को धूप में सुखा लिया जाता है। इसका के लिए मशीनों का इस्तेमाल भी किया जा सकत

नील निर्माण का उधोग कैसे शुरू करे (ultra marine idustry)

  नील निर्माण उद्योग (Ultra-marine Industry) व्यावसायिक स्तर पर नील का विश्लेषण करने पर निम्न घटक पाए जाते हैं: सिलिका 34 से 43 प्रतिशत तक एल्युमिना 22 से 28 प्रतिशत तक गंधक  10 से 16 प्रतिशत तक सोडियम ऑक्साइड 12 से 20 प्रतिशत तक कच्चा माल नील बनाने के लिए शुद्ध एल्युमीनियम सिलिकेट, सोडियम कार्बोनेट, सोडियम सल्फेट, क्वाट्ट्ज सिलिका, गंधक और कार्बन की आवश्यकता पड़ती है। कार्बन की जगह रोजिन का भी इस्तेमाल किया जा सकता है। अल्ट्रामेरीन ब्ल्यू बनाने का एक आधुनिक फार्मूला तथा निर्माण विधि यह है: काओलीन (भुनी हुई) सोडियम कार्बोनेट (एन्हाइड्स) 100 भाग सोडियम सल्फेट (एन्हाइड्र्स) 42 भाग गंधक  52 भाग कोयला 6 भाग बिरोजा 8 भाग उपर्युक्त फार्मूले से नील बनाने के लिए विभिन्न कार्यों को संपादित करना  पड़ता है जो इस प्रकार हैं: 1. कच्चे माल की तैयारी 2. बारीक पिसे पदार्थ को जलाना  3.हरे अल्ट्रामैरीन को महीन पीसना 4.अल्ट्रमैरीन ब्लू की परत से घुलनशील पदार्थों को निकालने के लिए पानी से धोना। 5. हरे अल्टूमैरीन को गंधक के साथ भूनकर नील बनाना 6. फिनिशिंग प्रक्रियाएं। प्रारंभिक तैयारी: एक कड़ाही में चाइना

अगरबत्ती, धूप का उधोग कैसे शुरू करे

  अगरबत्ती, धूप आदि (Incense sticket) भारत एक धर्मप्रधान देश है। हमार देश में कोई भी धर्म क्यों न हो. उसमेंअगरबत्ती जलाने का प्रचलन है। सुबह-सबरे नहा-धोकर अधिकांश लोग अपने घरों में भगवान की मूर्ति या तस्वीर के आगे अगरबत्ती जलाते हैं या दुकानदार अपनी दुकान में पूजा करते हैं। न केवल भारत, बल्कि भारत के अधिकांश पड़ोसी देश नेपाल, श्रीलंका, बर्मा, फीजी, मारीशस, लंदन, मलेशिया, अफ्रीका,तिब्बत, भूटान" आदि सहित अधिकांश देशों में पूजा के लिए अगरबत्तियों के इस्तेमाल का प्रचलन है। यही कारण है कि इसकी मांग तथा खपत में कभी कमी नहीं आती। इस उद्योग को आप मात्र 750 से 1000 रुपए की पूंजी से शुरू कर सकते हैं। अगरबत्ती बनाने के लिए किसी भी प्रकार की मशीनरी की आवश्यकता नहीं होती। अगरबत्ती का उद्योग मैसूर, महाराष्ट्र, चेन्नई तथा अजमेर में खासा प्रचलित है। भारत में अगरबत्ती के 200 से भी अधिक प्रमुख निर्माता हैं जिनमें से अधिकांश मैसूर और बंगलोर में हैं। अगरबत्ती बनाने के लिए सामग्री विभिन्न किस्म की सुगंधित लकड़ियां, सुगंधित तेल, जड़ें, पेड़ों की छालें, कृत्रिम सुगंध, रेजिन, बालसम, मैदा लकड़ी और पिसा हु

तेजाब शुद्धिकरण का उधोग (Acid cleaning industry)

  तेजाब शुद्धिकरण उद्योग ( Acid cleaning Industry) औद्योगिक स्तर पर बननेवाले अम्लों में अनेक अशुद्धियां होती हैं, जो अक्सरहा निकारक साबित होती हैं। इसीलिए तेजाबों की सफाई करना आवश्यक होउ ठता है सल्फ्यूरिक एसिड, नाइट्रिक एसिड व हाइड्रोक्लोरिक एसिड काइ स्तेमाल सर्वाधिक होता है इसलिए इन्हें स्वच्छ बनाना अत्यंत आवश्यक है। सल्फ्यूरिक एसिड का शुद्धिकरण अशुद्धियां : आर्सेनिक एसिड, एंटीमनी ऑक्साइड, सैल्पेनियम, थैलेनियम,आर्सेनियस एसिड, थैलियम, शीशा, कॉपर, मर्करी, कार्बनिक पदार्थ, एल्यूमीनियम,जिं क, नाइट्रिक एसिड, आयरन, नाइट्रस एसिड, क्लोरीन, नाइट्रिक ऑक्साइड आदि।इ नमें से आर्सेनिक व नाइट्रोजन ऑक्साइड ही ऐसी अशुद्धियां हैं जो सल्फ्यूरिकए सिड की गुणवत्ता पर असर डालती हैं। आर्सेंनिक की अशुद्धि दूर करने के लिएस ल्फ्यूरिक एसिड को हाइड्रोजन सल्फाइड के साथ मिलाया जाता है। इससे सभीअ शुद्धियां दूर हो जाती हैं लेकिन आर्सेनिक के कण नहीं निकल पाते। इसे अलगक रने के लिए आसवन (Distillation), क्रिस्टलाइजेशन, ट्राईक्लोराइड के रूपमें  अलग करना, सल्फाइड के रूप में अवक्षेप बनाना, चैंबर एसिड में आर्सेनिकका  अवक्षेप

फिनायल उधोग कैसे शुरू करे

  फिनाइल उद्योग  (Phenol Industry) हमें होनेवाली अधिकांश बीमारियां जीवाणु विषाणु या विभिन्न प्रकार के कीड़े-मकोड़ों आदि के कारण होती हैं। बहुत से ऐसे कीट हैं जो शौचालयों, नालियों और कूड़ेदान आदि में पाए जाते हैं। इसके कारण इन स्थानों पर तेज दुर्गंध होती है। इस दुर्गध को दबाने के लिए आजकल अनेक प्रकार की फिनाइल बाजार में उपलब्ध है। इस फिनाइल को बनाने के लिए किसी विशेष मशीन की आवश्यकता नहीं पड़ती। साथ ही, इस उद्योग को कम पूंजी में शुरू किया जा सकता है। फिनाइल दो प्रकार की होती है-ठोस तथा द्रव टिकिया के रूप में। फिनाइल रोजिन क्रियोजोट ऑयल और साबुन के पानी बनाया जाता है। फिनाइल काले-भूरे रंग का होता है। पानी में डाल देने पर इससे दूधिया रंग का कीटाणुनाशक घोल बन जाता है। हमारे देश में तीन ग्रेड की फिनाइल बनाई जाती है। ग्रेड की फिनायल में क्रियोजोट ऑयल की सांद्रता कम होती है जबकि तीसरे ग्रेड में क्रियोजोट ऑयल अधिक मात्रा में मिला होता है। इसके विपरीत दूसरे ग्रेड में यह मध्यम मात्रा में मिला रहता है। क्रियोजोट ऑयल का निर्माण क्राइसिलिक क्रियोजोट से होता है। फिनाइल के मुख्य घटक क्राइसिलिक क्रियो